भाजपा की 'खामोशी' विपक्षियों से ज्यादा पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए खल रही,सवाल सिर्फ एक है मेरा क्या होगा

मप्र भाजपा कभी हाइवे रफ्तार के साथ फर्राटे भरती है तो कभी दिग्विजय सरकार की सड़कों की याद दिलाती है। कहने का मतलब ये है कि भाजपा के जब संगठनात्मक चुनाव शुरु हुए तो पार्टी की रफ्तार नितिन गड़करी द्वारा बनवाई गई नेशनल हाइवे की तरह थी उसके बाद जैसे ही संगठनात्मक चुनाव खत्म हुए और लगा कि अब जिलों की कार्यकारिणी घोषित होगी तो फिर भाजपा दिग्विजय सरकार द्वारा बनाई सड़क पर आ गई। जब प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की घोषणा हुई तो फिर लगा अब भाजपा हाइवे पर रफ्तार पकड़ेगी लेकिन जिलों की कार्यकारिणी में भाजपा ऐसी उलझी की आज तक सुलझ नहीं पाई। जबकि दावा ये भी किया जा रहा था कि नवरात्रि से दिवाली के बीच प्रदेश कार्यकारिणी की भी घोषणा हो जाएगी लेकिन इस बीच बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया और पार्टी के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों की ड्यूटी बिहार चुनाव में लग गई। जिसके बाद भाजपा में 'खामोशी' का माहौल बन गया। प्रदेश कार्यकारिणी छोड़ो जिलों की कार्यकारिणी का काम भी भाजपा में ठप्प हो गया। अब प्रदेश कार्यालय में एक अजीब सी वीरानी छाई हुई है। कोई भी बड़ा नेता प्रदेश कार्यालय में दिखाई नहीं पड़ता है। बस वही कार्यकर्ता प्रदेश कार्यालय में आते हैं जिन्हे जिले की कार्यकारिणी में शामिल होने की संभावना या उम्मीद है। उसी प्रकार प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल होने की उम्मीद रखने वाले प्रदेश कार्यालय आ रहे हैं। बांकी पूरे कार्यारय में सन्नाटा सा पसर गया है। जो पदाधिकारी प्रदेश कार्यालय आता है वो यही सवाल करता नजर आता है कि मेरा क्या होगा।
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