राजेन्द्र शुक्ला के रहते रीवा की स्वास्थ्य व्यवस्था बीमार,चिकित्सकों की कमी से वेंटीलेटर पर अस्पताल

डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ला एक ऐसा नाम जो प्रदेश की सियासत में एक क्षितिज की तरह उभर कर सामने आया। विंध्य का होने के नाते उन्हे सियासत में बड़ा कद हासिल हुआ। किस्मत से विंध्य की जनता ने 30 में से 25 सीटों पर भाजपा को जिता कर उनका कद भी बढ़ा दिया। यही कारण रहा कि उन्हे डिप्टी सीएम बनाया गया। भाजपा का यह भी मानना है कि विध्य ब्राह्मण बाहुल क्षेत्र है लिहाजा राजेन्द्र शुक्ला को डिप्टी सीएम बनाने से बड़ा राजनीतिक लाभ होगा। भाजपा को लाभ हो अथवा न हो लेकिन राजेन्द्र शुक्ला खुद के लाभ में इस कदर सक्रिय हुए कि विंध्य का विकास पीछे रह गया। अब विंध्य की जनता भोपाल स्थित उनके बंगले जाती है तो घंटों उन्हे बैठना बड़ता है फिर भी डिप्टी सीएम साहब से मुलाकात संभव नहीं हो पाती है। डिप्टी सीएम साहब रीवा की जनता के अलावा हर ब्यक्ति से मिलना पसंद करते हैं। खासकर रीवा के लोग तो जैसे गंध मारते हों। रीवा के जो पत्रकार भोपाल में अलग-अलग संस्थानों में काम करते हैं उनसे भी राजेन्द्र शुक्ला मिलना पसंद नहीं करते हैं। राजेन्द्र शुक्ला को जब स्वास्थ विभाग की कमान मिली तो लगा था कि प्रदेश के अन्य अस्पतालों के हालात सुधरे य न सुधरें लेकिन रीवा के अस्पतालों के हालात जरुर सुधरेंगे। डिप्टी सीएम साहब ने बड़ी-बड़ी बातें भी कही। लोगों को पीपीपी मॉडल का झुनझुना भी पकड़ाया। ऐसा लगा कि पीपीपी मॉडल अपनाने के बाद एमपी के हर जिलों को मेडिकल कॉलेज मिल जाएंगे। आज तक पीपीपी मॉडल भी सिर्फ बयानों तक ही सीमित है। मोहन सरकार को सवा महीने से अधिक का वक्त बीत रहा है लेकिन डिप्टी सीएम की एक भी योजना धरातल में नहीं उतर पाई। रीवा के कटरा कसवा के अस्पताल में चिकित्सक नहीं है। जमुई गांव के स्वास्थ केन्द्र में करीब दस साल से चिकित्सक नहीं है। इसी प्रकार रीवा जिले के कई अन्य गांव में भी अस्पताल हैं जिनमें चिकित्सक नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि डिप्टी सीएम साहब के पास इसकी जानकारी नहीं है लेकिन वो चिकित्सकों की कमी को दूर नहीं कर पाए अथवा चिकित्सकों की कमी को दूर करने में उनकी दिलचस्पी नहीं है। राजेन्द्र शुक्ला के डिप्टी सीएम बनने के बाद पूरे रीवा जिले की स्वास्थ व्यवस्था पूरी तरह से वेंटीलेटर पर चली गई है।
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