जिस नेता पर 'डिफेंडर' लेकर पद देने का आरोप लगा वही नेता अब संगठन में समन्वय का कर रहा प्रयास

मप्र कांग्रेस की कहानी अजब और गजब है। विधानसभा में टिकट बंटवारा होता है तो पावरफुल नेता पार्टी का हित छोड़ अपना हित साधने में लग जाते हैं और बात जब संगठन के सृजन की हो तो बात पारदर्शिता की होगी लेकिन वहां भी प्रभावशाली नेता अपना हित साधने में परहेज नहीं करते हैं। कार्यकर्ताओं की तरफ से लाख आरोप लगने के बाद भी उन्हे शर्म नहीं आती है। और जब पानी सिर से ऊपर जाने लगता है तो फिर मामले को शांत करने के लिए समन्वय का काम करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। मप्र कांग्रेस में कुछ ऐसे ही आरोप इन दिनों लग रहे हैं। गौरतलब है कि महीने भर पहले मप्र कांग्रेस के 71 संगठनात्मक जिलों के जिला अध्यक्षों की घोषणा हुई है। जिसमें पारदर्शिता का जमकर डिंडोरा पीटा गया था। प्रदेश के सभी जिलों में दिल्ली से आए पर्यवेक्षकों को भेजा गया था। जब जिला कध्यक्षों के नाम की घोषणा हुई तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसी कहावत चरितार्थ होने लगी। मजे की बात ये भी रही कि दावा किया जा रहा था कि मेहनती और ईमानदार लोगों को आगे किया जाएगा। अब किसी नेता का गुट जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में हावी नहीं होने पाएगा। लेकिन जब नियुक्ति हुई तो सारे मुगालते दूर हो गए। बात सिर्फ यहीं तक नहीं रुकी प्रदेश प्रभारी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक जमकर आरोप लगे। एक नेता पर तो करोड़ों की गाड़ी डिफेंडर देकर पद लेने का आरोप लगा। Mukhbir को मिली सूचना के अनुसार दिल्ली के किसी शो रुम से गाड़ी कसवाई गई और सीधे अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचा दी गई। मामले की सूचना जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लगी तो उन्होने तह तक जाने के लिए अपने जासूसों को सभी जगहों पर तैनात कर दिया। और उसमें उन्हे कामयावी भी हाथ लगी लेकिन सबकुछ जान कर भी वो नेता कुछ नहीं करने की स्थिति में हैं लिहाजा अब वो इस ताक में बैठे हैं कि एक दिन मौका तो आएगा और जिस दिन मौका मिलेगा उस दिन छोड़ा नहीं जाएगा। अब जिस नेता पर डिफेंडर लेकर पद देने का आरोप लगा है वही जिला अध्यक्षों की लगातार बैठक ले रहे हैं। जिला अध्यक्षों को लगातार ताकतवर बनाने के नए-नए सुझाव भी दे रहे हैं। जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पर जिन नेताओं की उपेक्षा हुई उन्हे अब संगठन में समायोजित करने के नए उपाय सुझा रहे हैं जिससे लगी हुई आग को किसी तरह बुझाया जा सके। अब वो डीफेंडर की सवारी कर रहे हैं तो कुछ भरपाई तो करनी पड़ेगी लिहाजा नाराज नेताओं को एकजुट कर उन्हे गुटीय राजनीति से दूर रहने का हवाला दे रहे हैं और जिलों के संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका देने का प्रलोभन भी दे रहे हैं। अब देखना यह है कि मिशन 2028 की तैयारी को अंजाम देने आए नेताजी आगे और क्या गुल खिलाते हैं। और उनके पीछे लगे नेता कैसे उनका पर्दाफाश कर पाते हैं यह तो वक्त ही बताएगा।
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