'गुटबाजी' से ही कांग्रेस चलती है,गुटबाजी नहीं तो कांग्रेस नहीं

मप्र की कांग्रेस पार्टी सत्ता के लिए पिछले 20 साल से संघर्ष कर रही है लेकिन गुटबाजी हमेशा शबाब पर ही रहती है। गुटबाजी खत्म करने के लिए ही कांग्रेस में दिग्विजय और कमलनाथ के युग को खत्म किया गया लेखिन गुटबाजी खत्म होने के बजाय और शबाब पर आ गई। कांग्रेस में नया प्रदेश अध्यक्ष बनते ही संगठन सृजन अभियान का आगाज हुआ। संगठन का सृजन निष्ठा के साथ हुआ या नहीं ये तो कांग्रेस के कार्यकर्ता और पदाधिकारी ही बता सकते हैं लेकिन 'संगठन का सृजन' होने के बाद पार्टी के जो खुट अंदर थे वो सतह पर जरुर आ गए। कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी अपनी कांग्रेस खड़ी करने की योजना बना रहे थे उस बीच दिग्विजय सिंह और उमंग सिंघार एक अलग ही खिचड़ी पका रहे थे। छिंदवाड़ा में जहरीली कप सिरप कांड मामले में प्रदेश अध्यक्ष ने शाम को कैंडल मार्च निकाला तो उसमें उमंग सिंघार शामिल नहीं हुए। जिससे पटवारी और उमंग के बीच चल रही अदावत बगावत का रुप लेती दिखी। कांग्रेस के इस प्रकार की इस अनोखी एकजुटता पर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश केशवानी का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष पहले ही स्वीकार कर चुके हैं कि पार्टी में गुटबाजी का कैंसर है। भाजपा प्रवक्ता यहीं नहीं रुके उन्होने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस के नेताओं को देखास और छपास की बीमारी है। कांग्रेस के नेता जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे उनका एक ही उद्देश्य रहता है कि किस प्रकार से वो दिख जाएं और छप जाएं। कांग्रेस के जितने भी गुट हैं वो सिर्फ अपने गुट को दिखाने और छपाने के लिए ही सारे आयोजन करते हैं। और इसी बीच वो पार्टी की एक जुटता के बजाय ये दिखा देते हैं कि पार्टी के अंदर कितनी गुटबाजी है।
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