वर्चश्व की लड़ाई में अब आमने-सामने होंगे तोमर और सिंधिया,कार्यकारिणी के साथ निगम-मंडल की नियुक्तियों पर होगा संघर्ष

मप्र भाजपा में अब अंचलवार गुटबाजी सतह पर आने लगी है। साल 2020 में बोई गई सरकार की फसल वर्चश्व की लड़ाई के रुप में कटने को तैयार है। कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया जैसे कद्दावर नेता को भाजपा में शामिल तो कर लिया गया था लेकिन शायद भाजपा नेताओं ने उसके दूरगामी परिणामों पर विचार नहीं किया था। साल 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा में जो कहा वही हुआ। सिंधिया ने एकतरफा अपना वर्चश्व कायम किया लेकिन साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद सिंधिया की सियासी तकदीर बदलने लगी। भाजपा के पुराने छत्रप एक बार फिर सक्रिय होने लगे और वो असर अब दिखने लगा है। ग्वालियर सिंधिया की जन्मभूमि है लेकिन कर्मभूमि गुना है लिहाजा भाजपा के नेता उन्हे गुना में ही सीमित रखना चाहते हैं। पर सिंधिया एक क्षेत्र में सीमित रहने वाले कहां हैं। अब सिंधिया ने भी ग्वालियर में अपनी सियासी बिसात बिछाना शुरु कर दिया है। जिला,प्रदेश कार्यकारिणी के साथ निगम-मंडलों की नियुक्तियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपना वर्चश्व कायम रखना चाहते हैं। वहीं दूसरी तरफ राजनीति के मझे खिलाड़ी नरेन्द्र सिंह तोमर इतनी जल्दी हार मानने वाले खिलाड़ियों में नहीं हैं। पिछले 18 दिन में ग्वालियर में विकास योजनाओं की दो समीक्षा बैठक हुई हैं जिसमें सिंधिया ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वो ग्वालियर के लिए कितने चिंतित हैं। गुना लोकसभा सीट से सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर में औपचारिक बैठक नहीं ले सकते इसलिए वो अपने समर्थक और जिले के प्रभारी मंत्री तुलसीराम सिलावट की अध्यक्षता में बैठक बुलाते हैं। उसमें उपस्थित रह कर सिंधिया अफसरों से जवाब-तलब करते हैं। मजे की बात यह है कि दोनों बैठकों में ग्वालियर के सांसद भरत सिंह कुशवाहा उपस्थित नहीं रहे। वो नरेन्द्र सिंह तोमर के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस सक्रियता पर तोमर खेमा प्रत्यक्ष तौर पर तो कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता लेकिन उसने निकट भविष्य में निगम-मंडलों और संगठन के पदों पर अपने गुट के ज्यादा से ज्यादा लोगों की ओर ध्यान केन्द्रित कर पलटवार की तैयारी शुरु कर दी है।
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