विंध्य में डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल के आगे बीजेपी का कोई अन्य चेहरा नहीं 'पनपा'

राजनीति की एक अपनी खूबी है जो नेता आगे निकल जाता है वो दूसरे नेताओं को अपने से आगे किसी को नहीं निकलने देता है। यह हर पार्टी में होता है और समय आने पर उसका खामियाजा भी पार्टी भुगतती हैं। पूर्व में कांग्रेस नेता श्रीनिवास तिवारी और अर्जुन सिंह ने विंध्य में सिर्फ अपना वर्चश्व बनाए रखा और दूसरे नेताओं को पनपने नहीं दिया जिसका खामियाजा कांग्रेस आज तक भुगत रही है। विंध्य में कांग्रेस करीब-करीब खत्म हो चुकी है। ठीक उसी प्रकार पिछले कुछ सालों से बीजेपी में भी देखने को मिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राजेन्द्र शुक्ल को इतनी ज्यादा हाइट दी गई कि अब वो किसी अन्य नेता को विन्ध्य में पनपने ही नहीं दे रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व को इस बात की जानकारी नहीं है लेकिन एमपी बीजेपी का कोई भी नेता राजेन्द्र शुक्ल की सीमाएं निर्धारित करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। जबकि विंध्य एक ऐसा क्षेत्र है जहां भाजपा एकतरफा है। विंध्य की जनता ने 30 सीटों में 26 सीट भाजपा को दिया है। जिसमें कुछ नेता तीसरी और चौथी बार चुनाव जीत कर आए हैं कुछ नेता तो पांच और छह बार भी चुनाव जीते हैं फिर भी उनके हाथ खाली हैं। भारतीय जनता पार्टी को राजेन्द्र शुक्ल पर ही विश्वास है। अथवा जो राजेन्द्र शुक्ल दिखाते हैं वही भाजपा का नेतृत्व देखना चाहता है। भारतीय जनता पार्टी ने विंध्य से राजेन्द्र शुक्ल को ही पार्टी का चेहरा बना रखा है जबकि वहां की जनता उन्हे स्वीकार नहीं करती। विंध्य की जनता की विडंबना यह है कि आज वो अपने काम के लिए भोपाल आते हैं तो डिप्टी सीएम साहब के छर्रे उनके पास तक पहुंचने ही नहीं देते। परिणाम स्वरुप विंध्य से आए लोग अन्य नेताओं के बंगले झांकते नजर आते हैं और दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। दूसरी तरफ भाजपा और डिप्टी सीएम हैं कि उन्हे तो सिर्फ अपने मन की ही करनी है। जनता परेशान होकर त्राहिमाम कर रही है लेकिन जनता की पुकार सुनने वाला कोई नहीं है। ठीक यही स्थिति 20 साल पहले कांग्रेस में थी जिसका परिणाम आज सबके सामने है। यही हालात चलते रहे तो कहीं आने वाले समय में भाजपा को भी यही दिन न देखना पड़े क्योंकि जनता टे सहनशीलता की एक सीमा होती है। आज रीति पाठक,गिरीश गौतम,दिव्यराज,नागेन्द्र सिंह सहित कितने नेताओं को विंध्य में ठिकाने लगा दिया गया यह सभी नेता अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन नतीजा सिफर ही निकल रहा है।
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