भाजपा के राज में भगवान परशुराम के वंशजों की 'जमकर हुई उपेक्षा'

Apr 30, 2025 - 07:46
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भाजपा के राज में भगवान परशुराम के वंशजों की 'जमकर हुई उपेक्षा'

पूरा देश अक्षय तृयीया के रुप में भगवान परशुराम की जयंती मना रहा है। लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि भगवान परशुराम के वंशजों की आज क्या स्थिति हो रही है। राजनीतिक,सामाजिक और प्रशानिक सभी क्षेत्रों में भगवान परशुराम के वंशजों को उपेक्षित करने का सिलसिला जारी है। ब्राह्मणों को उपेक्षित और प्रताड़ित करने का एक चलन सा बन गया है। किसी दलित अथवा पिछड़े पर मामूली सा भी अत्याचार होता है तो उहके लिए शासन-प्रशासन खुद आगे आ जाते हैं और तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करते हैं लेकिन ब्राह्मण समाज राजनीति क्षेत्र में उपेक्षित और सामाजिक क्षेत्र में प्रताड़ित किया जा रहा है उसके लिए किसी की जुवान तक नहीं खुलती है। भारतीय जनता पार्टी के राज में ब्राह्मणों को लगातार उपेक्षित किया गया। उनके ज्ञान को महत्व देने के बजाय अन्य वर्गों की आवादी और उनके आरक्षण को ध्यान में रख कर सिर्फ वोटबैंक की राजनीति चल रही है। आए दिन प्रदेश के अलग-अलग जिलों से ब्राह्मणों को प्रताड़ित करने की खबरें आती हैं लेकिन उनके प्रति सरकार का रवैया सिर्फ काम चलाऊ देखने को मिलता है। प्रदेश में किसी भी पार्टी के नेता हों वोटबैंक साधने के लिए सिर्फ पिछड़ा और दलित वर्ग की बात करते हैं। पूरे देश में ब्राह्मण समाज को विलेन के रुप में पेस किया जाता है। ब्राह्मण दलित को उसके सरनेम से संबोधित करे तो जुर्म की श्रेणी में आता है और वहीं दलित ब्राह्मण को जब उसके सरनेम से पुकार कर उसका बार-बार अपमान करता है तो उसके लिए कोई कानून नहीं है। सिर्फ भगवान परशुराम ही नहीं बल्कि भगवान श्रीराम के वंशज कहे जाने वाले क्षत्रिय वर्ग को भी अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है। आदिकाल से जिन्होने देश की सेवा में अपना सर्वश्व नौछावर किया उनकी हालत भी आज ठीक नहीं है। सामाजिक क्षेत्र में तो इन वर्गों को उपेक्षित और प्रताड़ित किया ही जाता है लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में भी इन वर्गों को लगातार उपेक्षित करने का काम किया गया। ज्ञान को अनदेखा कर आरक्षण को महत्व देते हुए राजनीति में अन्य वर्गों को पद देने की एक होड़ सी लगी है जिससे वोटबैंक को साधा जा सके। ब्राह्मण और क्षत्रिय की जरुरत राजनीतिक पार्टियों को सिर्फ चुनाव के दौरान महसूस होती है जब लगता है कि इनके कहने से सभी वर्गों के लोग वोट करेंगे। चुनाव जैसे ही खत्म होते हैं तो इन वर्गों को दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंक दिया जाता है।

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