एमपी में दो नहीं अब 'सिंगल' दलीय प्रथा लागू,इतिहास का सबसे कमजोर विपक्ष जनता की आवाज उठाने में नाकाम

मप्र की राजनीति द्विपक्षीय दलों की रही है लेकिन अब सिर्फ एक दल तक ही सीमित होकर रह गई है। कांग्रेस के नेता आज भी यही खयाली पुलाव पकाते रहते हैं कि एक दिन जनता खुद उनकी सरकार बनाएगी। लेकिन उन्हे ये नहीं मालूम कि अब सरकार के पास सत्ता में बने रहने का ऐसा फॉर्मूला हाथ लग गया है जिसकी काट के लिए कांग्रेस को लगातार प्रयास करते रहना होगा। प्रदेश में जिस प्रकार से घटनाएं हो रही हैं वहां पर कांग्रेस के नेता पहुंचते तो हैं और प्रदर्शन भी करते हैं लेकिन उनकी आवाज जनता के कानों तक नहीं पहुंच रही है। जिस प्रकार से छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सिरप से 16 बच्चों की दुखद मौत हुई तो आनन-फानन में कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी पीड़ित परिवार के बीच पहुंचे और फिर अंशन कर विरोध भी दर्ज कराया लेकिन क्या वो काफी था। यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। इसके पहले हनी ट्रैप जैसा मामला आया,नर्सिंग घोटाला सामने आया,मछली गैंग का मामला सामने आया,पुलिस भर्ती घोटाला मामला सामने आया। सभी मामलों को कांग्रेस नेताओं ने ऐसे उठाया जैसे उन्होने गीली लकड़ी में माचिस मारी हो। कभी भी उस गीली लकड़ी में कांग्रेस नेताओं ने फूंक मारने का प्रयास नहीं किया। जबकि इस वक्त विरोध करने के इतने साधन और संसाधन मौजूद हैं उसके बाद भी विपक्ष खाना पूर्ति के लिए प्रदर्शन करता है और फिर खुद की वाहवाही करते हुए बैठ जाता है। छिंदवाड़ा में इतनी बड़ी घटना हुई। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष ने पहले पहुंच कर बाजी तो मार ली जिसके कारण सीएम को तत्काल पीड़ित परिवारों के बीच पहुंच कर कुछ अधिकारियों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई करनी पड़ी लेकिन क्या इतना काफी था। प्रदेश के स्वास्थ मंत्री राजेन्द्र शुक्ल हैं जिन्हे काफी संवेदनशील नेता माना जाता है। इस मामले में उनकी तरफ से कोई भी गंभीरता देखने को नहीं मिली। 16 बच्चों की मौत का मामला है कांग्रेस को चाहिए था कि इस मामले में प्रदेश के हर जिले में प्रदर्शन करे। और राजधानी में महा आंदोलन करे,जेल भरो आंदोलन करे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष ने छिंदवाड़ा प्रवास में कहा कि वो इस मामले में राजनीति करने नहीं आए हैं। सवाल इस बात का उठता है कि विपक्ष इस मामले में राजनीति नहीं करेगा तो किस मामले में राजनीति करेगा। बच्चों की जान जा रही है। प्रदेश की जनता खुद को असुरक्षित महसूस कर रही है। कोई भी बीमार होता है तो वो दवाई ही कराता है और यह नहीं मालूम कि लोग जो दवाई ले लहे हैं वो जहर है अथवा अमृत है। लिहाजा जिसे कांग्रेस अध्यक्ष राजनीति का नाम दे रहे हैं वो जनता की आवाज है। विपक्ष अगर जनता की आवाज को राजनीति का नाम देता है तो फिर ऐसे विपक्ष का क्या काम जो सिर्फ सत्ता में बैठने के लिए जन्मा है। अब तक तो कांग्रेस को पूरे प्रदेश में सरकार के खिलाफ हल्लाबोल कर देना चाहिए था। लेकिन प्रदेश का दुर्भाग्य है कि उसे न सरकार संवेदनशील मिली और न ही विपक्ष। तीसरी पार्टी को ये दोनों दल एमपी में पनपने नहीं देते। कुल मिला कर मप्र में अब दो दलीय नहीं सिंगल दलीय प्रथा आगे बढ़ चली है जो लोकतंत्र और प्रदेश की जनता के लिए काफी भयानक होने वाली है।
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