वीडी शर्मा ने पद में रहते खुद के लिए नहीं संगठन के लिए किया काम,वो हमेशा यही कहते हैं करते हैं सब कन्हैया बस नाम हो रहा है

कुछ लोग खुद के लिए जीते हैं तो कुछ लोग अलग-अलग कारणों से जीते हैं। वीडी शर्मा उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होने पार्टी के लिए जिया और जब भी पार्टी ने उनसे उनका 100 फीसदी मांगा तो उन्होने उससे दोगुना दिया। जिस दिन उन्हे पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया उस दिन से आखिरी दिन तक उन्होने पार्टी के लिए संघर्ष किया। जब लोग कह रहे थे कि इस बार भाजपा को 50 सीट से ज्यादा नहीं मिलेंगी तब वो सीना तान कर कह रहे थे कि इस बार भाजपा की ऐतिहासिक जीत होगी जिसकी लोगों को उम्मीद भी नहीं होगी। क्योंकि वीडी शर्मा को इस बात विश्वास था कि उन्होने जिस प्रकार से त्रिवेदों की रचना की है वो पार्टी के लिए तुरुप के इक्के साबित होंगे। वीडी शर्मा ने प्रदेश की 95वे फीसदी विधानसभा सीटों पर प्रवास किया था। हर कार्यकर्ता से सीधे संवाद करते थे। प्रदेश कार्यालय से लेकर उनके निवास तक हमेशा कार्यकर्ताओं के लिए उनका दरवाजा खुला रहता था। भोपाल में रहते हुए वीडी शर्मा सुबह 11 बजे प्रदेश कार्यालय पहुंच जाते और कार्यकर्ताओं से मेल मिलाप के साथ उनकी शिकायत भी सुनते। जब अध्यक्ष पद के चुनाव की बात आई तो उनके चेहरे पर शिकन देखने को नहीं मिली। वीडी शर्मा ने खुल कर कहा कि परिवर्तन संगठन का नियम है। पार्टी ने उन्हे खूब मौका दिया और जमकर विश्वास किया है। उन्होने भी अपनी क्षमता के अनुसार पार्टी के लिए वो सबकुछ देने का प्रयास किया जो एक कार्यकर्ता को करना चाहिए। एक मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले वीडी शर्मा को कभी उम्मीद नहीं थी कि पार्टी उन्हे इतने बड़े पद पर बैठाएगी लेकिन पार्टी ने बैठाया। वीडी शर्मा जब अध्यक्ष बने थे तब कांग्रेस की सरकार स्थापित हो चुकी थी। उनके अध्यक्ष बनने के बाद कमलनाथ सरकार तास के पत्तों की तरह धरासाही हो गई। इसी लिए वीडी शर्मा भाजपा के शुभंकर अध्यक्ष कहलाए। सत्ता में आने के बाद वीडी शर्मा ने अपनी मेहनत को कई गुना बढा दिया। आखिर में जब उनके अध्यक्षीय कार्यकाल को पूरा किया तो भाजपा एमपी विधानसभा में 163 सीट और लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप कर चुकी थी। वीडी शर्मा इस सफलता का श्रेय कभी नहीं लेते वो हमेशा कहते हैं कि करते हैं कन्हैया बस नाम उनका हो रहा है। यह शब्द दर्शाते हैं कि वो एक फकीर की तरह अध्यक्ष बन कर आए थे जिन्होने खुद के बजाय पार्टी के लिए सोचा और जो बन सका किया और अंत में खाली हाथ विदाई ले ली।
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